रानी (Rani)
Dedicated to all the nameless young girls out there in our villages
आज वर्षों बाद, रानी अपने मायके जा रही थी । ट्रेक्टर (गाड़ी) पर सवार , उसके साथ की औरतों को बड़ी अनूठी लग रही थी उसका बाहरी सजावट । भला एक हाथ में तीन चूड़ियां कोई पहनता है क्या ! इसकी माँ ने इसे बताया नहीं कितना अशुभ होता है । दुसरे में चार थीं, दो लाल, एक पीली और एक हरे रंग की ।
“ गाँव की बहु हो का बिटिया ? ” , एक बूढी औरत ने पूछ ही डाला।
“ फुलिया मिस्त्री की बेटी हूँ । ”, रानी ने एक औपचारिक मुस्कान के साथ उत्तर दिया ।
“ हसनपुर वाले फुलिया मिस्त्री की ?”
“ जी ”
“ बड़े विचारवान *रहलें तोहार पिता जी । महतारियो के भी बहुत बढ़िया सुभाव-विचार है तोहार । ”, *उस बूढ़ी औरत ने रानी के लिए थोड़ी सांत्वनाएं जुटायीं ।
रानी जब छोटी थी तब उसके पिता जी का खेत में पानी चलाने वाले बोरिंग जनरेटर के साथ हादसे में अकाल मृत्यु हो गयी । रानी की माँ एक अत्यंत सरल और दयावान औरत थीं । गाँव में एक बेटे को ही असली वारिस समझा जाता है, लेकिन उन परिस्थितियोँ में भी रानी ने अपने पिता की अंतिम अग्नि खुद दी थी ।
हाई-स्कूल पर ट्रेक्टर (गाड़ी ) ने लाकर छोड़ दिया । अपना थैला उठाके , वहाँ से वो अपने हवाई चप्पल को धीरे — धीरे मिटटी के बने एक-पगिया रास्ते पर रखते हुए, अपने घर की ओर चल दी । शाम का वक़्त था , गाँव के बुजुर्ग घर के दालान पर लकड़ी के बने मचान के ऊपर रेडियो लिए विविध-भारती का सीधा प्रसारण सुन रहे थे । औरतें दीये , लाल्टेन इत्यादि जला कर , सभी घरों में रौशनी दिखा रही थीं । बूढ़ी औरतें लोटे में पानी भर कर , उसको हाँथ की उँगलियों से ढक के, आँगन में थोड़ा — थोड़ा पानी छिड़क रही थीं। न जाने कितने दिनों बाद रानी को वो भीनी खुसबू नसीब हुई होगी । कुछ दालानों पर मास्टर जी कुर्सी पर बैठ के कुछ बच्चों को गणित का पहाड़ा याद करवा रहे थे , तो कहीं कुछ लड़के ताश का खेल खेल रहे थे। तभी रानी के पैर किसी चीज़ से भिड़ गया । नीचे मुड़ के देखा तो मिटटी में लिप्त एक खिपली (ईंट का टुकड़ा) पड़ा था। उसे देख रानी के मन में न जाने कितनी यादें फिर से सांस लेने लगीं। कुछ देर के लिए मन दौड़ पड़ा , उसी खिपली को हाँथ में लिए , बाल की दोनों चोटियों को हवा में लहराए , एक बारह साल की रानी बन जाने को। गाँव का एक बहुत ही प्रसिद्ध खेल है किथ — किथ जिसे अंग्रेजी में hopscotch या stapoo भी बोलते हैं, जिसे एक पैर पे खड़े हो के , एक खिपली के सहारे खेला जाता है। कोई ठोस वजह तो नहीं लेकिन यह खेल लड़कियों में ज्यादा प्रचलित है।
उस खिपली को अपने पर्स में रख कर रानी अपने घर की और बढ़ी। आकाश छूता शीशम का पेड़ और गेंदे की फूल की खुसबू से कोई भी फुलिया मिस्त्री का घर पहचान ले । खुर्पी — कुदाल के सहारे अपने हाथों से बनाये हुए छोटे खेत में उसकी माँ ने बैंगन , मूली , मिर्च आदि उगा रखे थे। वहीं मचान पर माँ ने शायद कुछ बना के सूखने को दे रखा था. “*पापड़ मालूम पड़ता है।”, *मन में सोचते हुए रानी अंदर घुसी तो देखा माँ पड़ोस के किसी लड़की के साथ, चौखट पर बैठ के लूडो खेल रही थी। माँ का लूडो बोर्ड अब भी वही है, बस उसपे अनगिनत सेलो टेप की सजावट है ।
“ अरे रानी तू ! कैसे आना हुआ रे ? एक चिट्ठी से संदेशा भी नहीं भिजवाया तूने तो। आ, बैठ। “, माँ चटाई पर से उठते हुए बोली।
पड़ोस वाली लड़की लूडो समेट कर अपने घर को चल दी। वहीं माँ का चेहरा इस उम्र में भी छोटे बच्चे की तरह खिल उठा था।
“रुक मैं अभी निम्बू तोड़ के लाती हु, सरबत बनाने के लिए “
_“अरे माँ , रहने दो न “ _— जब तक रानी कुछ बोल पाती, बिना चप्पल पहने ही ,उसकी माँ निम्बू तोड़ने के लिए घर के पीछे वाले बागीचे को प्रस्थान कर चुकी थी।
रानी ने अपने हाथ पैर धुले, भगवान् घर जा कर कुल देवी और अपने पिता की तस्वीर को नमन किया, फिर रसोई घर से एक कटोरे में दो ग्लास पानी भर लिया। एक नज़र दौड़ाया तो उसे चीनी का डब्बा दिखा। मात्र आधे चम्मच चीनी शेष थी उसमें।
उस सरबत को तो माँ के प्यार ने मीठा बनाया था।
रानी शाम ढलते ही अपने बचपन की सखियों के घर चल दी। आज न जाने कितने दिनों के बाद उसे अपने सर पे आँचल की फ़िक्र नहीं थी और न ही घर वापस आने की जल्दी।