मसान (Masaan)
Nov 24, 2016
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तसव्वुर से उसके ही
कुछ, यूँ उतर के तुम
उसके नज़रों से छल करती ,
.
आज छज्जे पे बैठ के उसके
दिल का, अकस्मात्
टोह क्यों ले रही
.
याद है वो मेले में
इनायत थी मिली उसे
जो गुब्बारों की सनसनी दौड़ में
आतिशबाजियों के बीच
मन विक्षिप्त कर दिया था तुमने
.
जब संगम के किनारे
उस शांत
मदमस्त हवा के बीच
सलीके में
लब काँप उठे थे उसके
.
प्रेम की चरमसीमा थी वो
या अमरसंगीत का शुभारम्भ
जब घाट पर उस दिन
तुम्हारा मोती चुरा कर उसने
अपनी रूह के संग
जलाया था तुम्हे
.
उन्हीं लबों से उसने
सुरा उतारी थी भीतर
वो दोस्त ही तो थे
जो प्रेम के छाये में भी
सूरज को मुट्ठी में लिए फिरते थे
.
आओ उड़ चलें फिर
इस मसान से कहीं दूर
लौट आएंगे जब
तुम थक जाओगी
अकेले गोते लगाते लगाते