आंसुओं के बिंब से छलकती हुई दुनिया, देखी थी मैंने एक बार
वक्त की गहराईयों में डूबती नज़र आई थी वो
नज़रों से सहारा दिया मैंने
ख़ुशी का भरोसा दिया मैंने
न जाने मेरा हाथ क्यों न थामाँ उसने
उसे गहराइयों की सुकूँ भाती चली गयी ।
Thanks to Sandeep Jha for the first two lines.